नवीं बैताल कथा- भस्मासुर

   तूफानी रात थी। हमेशा की तरह राजा ने पेड़ पर से लाश को उतारा। पीठ पर लादकर चुपचाप चल पड़ा। लाश में छुपा बैताल राजा से बोला- "राजन, तुम थक गए हो। चलो तुम्हारी थकान कम करने के लिए कहानी सुनाता हूं- जम्बूद्वीप में  अफरातफरी मची थी। खौद-खौद कर जगह-जगह धर्म के छिपे अवशेष निकाले जा रहे थे। उनका अपनी सुविधा के अनुसार विश्लेषण और प्रत्यारोपण हो रहा था। द्वीप का राजा संकिर्णतावादी मानसिकता में उपजा, पनपा और विकसित हुआ था। अब राज्य के विकास के लिए सबको साथ लेकर चलना उसकी जरूरत थी। उसके लिए अब अपनी जरूरत को हकिकत में परिवर्तित करना मुश्किल था, असंभव था। वह आंखें, कान बंद किए था। कभी-कभार सुविधा के अनुसार मुंह खोल कर मन की बात कर लेता अन्यथा चुप्पी ही लगाएं रहता। पंच परमेश्वर भी मुकदमे निपटाने के बजाय समझौता करवाकर फैसला सुना दिया करते। फैसला सुनाने के बाद सोमरस का पान करने पांच सितारा में चले जाते और भविष्य में अपने लिए खुलने वाले सुनहरे दरवाजे के सपने देखते। न्याय प्रक्रिया निभाने में भी गणराज्य की रूचि कम होती गई। वह तत्काल न्याय में विश्वास करने लगें। इसके लिए दानवाकार मशीनों पर भरोसा करते। यूं तो भीड़ की आदिम इच्छाओं को जगा देते तो भी काम हो जाता। मगर फिर संभालना थोड़ा मुश्किल हो जाता इस कारण  मशीन के बटन पर ही विश्वास रखतें। गणराज्यों की आंखों की दृष्टि में दोष था। उन्हें दोनों आंखों से बराबर नहीं दिखाई देता था। कुछ मामलों में उनकी बाईं ओर की दृष्टि कमजोर होती, दाईं ओर की अच्छी होती। तो कुछ मामलों में दाईं ओर का दिखाई नहीं देता, बाईं और स्पष्ट दिखाई देता। अक्सर दोष देखने के मामले में बाईं ओर का स्पष्ट दिखाई देता। मशीनों का उपयोग करना हो तो भी ऐसा होता। गलतियां देखनी हो तो दाईं ओर की दृष्टि कमजोर हो जाती। पंच परमेश्वर के हाल तो यह थे कि छुटभय्या की अग्रिम जमानत के मुद्दे पर भी वह रात को बैठक बिठा लेते और मामला सुलटा देते। लोगों के सिर से छत हट जाए, बिना उनकी आज्ञा के तो भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।

            जम्बूद्वीप की  ऐसी परिस्थितियों में द्वीप के एक गणराज्य के गृहमंत्री ने चुड़ी बेचने वाले व्यक्ति के धर्म की पहचान के लिए पहचान पत्र की मांग का समर्थन किया। तो उनके छूट भैय्या इस पर अमल कर अपना राजनीतिक भविष्य चमकाने लगे। ऐसे ही किसी गणराज्य के, किसी शहर में डिमेंशिया जैसी बीमारी से पीड़ित एक वृद्ध अपने घरवालों से बिछड़ कर किसी दूसरे शहर में पहुंच गया। वह वृद्ध किसी भी परिवार का, किसी भी घर का, किसी का भी सम्मानित परिजन हो सकता था। दूसरे शहर में वह सरकार समर्थित पार्टी के उन्मादी व्यक्ति के हाथ लग गया। उन्मादी व्यक्ति ने उससे कुछ सवाल किए। कमजोर मानसिक स्थिति के चलते उसने कुछ और ही जवाब दिये। पूर्वाग्रह ग्रसित उन्मादी को लगा यह दूसरे धर्म का हैं। नेताई चमकाने का, अपने नंबर बढ़ाने का अच्छा मौका हैं। उसने अपने गुर्गों को कैमरा थमाया और मारपीट पर उतर आया। एक सवाल करता और चार चांटे जमाता। सिलसिला लंबा चला। इस मारपीट में वृद्ध व्यक्ति मर गया। पुलिस स्टेशन के पास ही उसकी लाश मिली। लावारिस की तरह। उसकी लाश को बाद में परिजनों ने पहचाना और दाह संस्कार किया। इस बीच राजनैतिक नंबर बढ़ाने के चक्कर में वीडियो वायरल हो गया। एक ही पार्टी, एक ही विचारधारा परंतु परिजन की हत्या होने के कारण दूसरा पक्ष शिकायत दर्ज करवाने पर तुल गया। पुलिस ने टालमटोल की। मामला द्वीप के लेवल पर गरमाने लगा तो मजबूरी में खानापूर्ति हुई। मकान तोड़ने वाली मशीनें दौड़ा दी। आरोपी का घर दाईं और होने के कारण प्रशासन को दिखाई नहीं दिया। टूटा भी नहीं। न्याय पूरा हो गया। एक दुसरे गणराज्य के सभासद के ट्वीट पर तीसरे गणराज्य से लंबा सफर कर आरोपी को पकड़ने वाली चुस्त पुलिस, हत्या के मामले में लेटलतीफी करती रही। पुरे द्वीप में सरकारी, धार्मिक स्तर चुप्पी छाई रही।"- कहकर बेताल ने कहानी समाप्त की। 

          थोड़ी चुप्पी के बाद उसने सवाल किया- "राजन, मैं इस तरह की घटनाओं पर द्वीप और गणतंत्र के मुखियाओं के व्यवहार से अचंभित हूं। मेरे कई सवाल है मगर मैं सवाल करने की मानसिक स्थिति में नहीं हूं। तुम ही इस बारे में प्रतिक्रिया दो। अन्यथा तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे।"

          यूं तो राजा भी इस फटे में अपनी टांग नहीं अड़ाना चाहता था। परंतु सवाल सिर का था इसलिए बोला- "मैं भी तुम्हें एक कहानी की याद दिलाता हूं। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर भस्मासुर को एक वर दिया था। भस्मासुर बहुत कुछ भस्म करने लगा था- चैन, अमन, शांति, सौहार्द, विकास सब। वरदान के घमंड में भगवान शिव की जान पर भी बन आई थी। वह तो भगवान विष्णु थे जिन्होंने मोहिनी रूप धारण कर भगवान शिव और सबको नष्ट होने से बचाया था। जम्बूद्वीप में मोहिनी कौन बनेगा? कैसे सब बदलेगा यह सब भविष्य के गर्भ में हैं। बाकी तो तुम समझदार हो।" -कह कर राजा चुप हो गया। 

            बैताल और राजा दोनों ही निराशाजनक स्थिति में अपने कर्तव्य भूल  कर खड़े थे। फिर अचानक बैताल लाश को उठा कर पेड़ पर लटक गया।

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